कौन कहता है मैं इंसान नहीं
गर जो मुझे खिलौने पसंद हैं
फिर तो वो भी दरिंदा है
जिसे मेरी पहचान नहीं
हवश भरी हर उन आँखों में
हर चीज़ छीनना चाहता है
मुझमे तो चाहत है एक
जिसे हर बच्चा पहचानता है
बताशों को देख आज भी
यह मन मेरा ललचाता है
बालों में आज भी वो हाथ
मुझे चैन की नींद सुलाता है
लोग फिर भी कहते हैं
मुझमे सोचने की क्षमता नहीं
अब बड़ी हो गयी हूँ मैं
मेरी उम्र को यह भाता नहीं
है मन में उठा इक सवाल मेरे
इनकी सुनूँ मैं तो क्यूँ सुनूँ
अगर बड़ी हो चुकी हूँ मैं
तो क्यूँ न अपने रास्ते खुद चुनूँ
सुन कर सबकी बातों को
जो अमल करना मैंने शुरू किया
बात तो फिर वहीं रुकेगी
है मैं का मैंने हनन किया
क्यूँ बदलूँ मैं उनके कहने पर
अपने अस्तित्व को क्यूँ ख़त्म करूँ
लड़ाई तो आज भी वहीं है
मेरा मैं ही मेरी पहचान बने............
best line:
ReplyDelete"...लोग फिर भी कहते हैं
मुझमे सोचने की क्षमता नहीं
अब बड़ी हो गयी हूँ मैं
मेरी उम्र को यह भाता नहीं..."
nice..:-)
thanx sisto:)
ReplyDeletetu ache se samajh sakti hai.....