ik roz
Monday, October 31, 2011
सहर....
चाहिए एक नयी ज़मीन
जहाँ न कुछ भी पुराना हो...
न कोई भी डर रहे
न कोई गम पुराना हो...
काश इस काली स्याही को
हकीक़त की मुहर मिल जाए...
अब थक चुकी हूँ मैं
इस शाम को नयी सहर मिल जाए... ... !!!!
Sunday, October 16, 2011
बहुत दिनों बाद आज मैं कुछ लिखने बैठी...
मालूम हुआ कि मेरी सोच को दीमक लग चुका है...
कुछ नया ख्याल ज़हन में नहीं आता अब...
कोरा कागज़ भी निकाल जीभ मेरी बेबसी पे चिढ़ा रहा है.... ...!!!!!
Friday, October 7, 2011
हम तेरे शहर में आये थे नूर लेकर...
तेरी बेनियाज़ी ने हमें बेनूर कर दिया...
फ़ख्र करते थे कभी अपनी जिंदादिली पर...
उस नाज़ को तुने हर दम चूर-चूर कर दिया.....!!!!!
Tuesday, October 4, 2011
आज फिर तुझे तन्हाई ही प्यारी है...
इन गलियारों कदम रखा तोह ऐसा लगा.....!!!
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