Thursday, May 21, 2015

अधूरा सा है !

शाम को आना था तनहाई में मेरी ।
रुस्वाई में भी आई तो ख़ैर कोई बात नहीं।
मंज़िल ए अलफ़ाज़ का पहुंचना था लाज़मी।
बाबस्ता ना पढ़ो तो ख़ैर कोई बात नहीं।


शाम ढलती हुई, मेघ आपस में अठखेलियां करते हुए और कहीं दूर से मद्धम सी कानो में पड़ती हुई सुर से सजे हुए ये नज़्म।  खिड़की की ओट में बैठ ऐसा लग रहा था जैसे आप घंटों बैठे अपनी कविता के लिए वो आखरी शब्द ढूंढने की जिरह में अभी तक दसियों पन्ने फाड़ के फ़ेंक चुके हों, दस- बारह प्याली चाय पी चुके हों और न जाने कितने सिगरेट के बट को ऐशट्रे में बुझा चुकें हों और आपको आपके पांव के नीचे आई माचिस की तीली से उस परफेक्ट वर्ड जिसकी आपको तलाश थी की चिंगारी सी जलती हुई सी दिखे।  बेहद खूबसूरत अनुभूति होती है न तब। अपने अंदर भरे उस खालीपन को प्यार से भरने की अनुभूति। मैं अपने तसब्बुर में पता नहीं कब तब सैर करता रहा , भक्क जो टूटी तो सामने चाय का कप और इंदौर के नमकीन रखे हुए थे और पुरानी फिल्मों की तरह सामने मुंह हिलाता हुआ मेरा नौकर।  मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था कि वो क्या कहना चाह रहा है जैसे मैं किसी शून्य में था , उसकी तरफ पूरी टकटकी मैं  देखे जा  रहा था और कुछ देर बाद वो अपना सर अफ़सोस में हिलाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया।  जब मैं पूरी तरह होश में आया तो सामने रखी चाय की प्याली से आती ख़ुश्बू मुझे सम्मोहित करने को तत्पर दिखी। प्याली उठा कर मैंने उसकी इक चुस्की ली और नमकीन खाए और इक ख्याल को खुद से मद्देनज़र किआ।  क्यों ना हर शाम की तरह इस शाम को ज़ाया ना कर आज कुछ किया जाए, कुछ तो नया, बिलकुल अलग।

मैंने झट से अपने नौकर को मेरा कैनवास लाने को बोला।  उसने कहा बाबू कहाँ इन चक्करों में फंसते हो।  तुम्हारा कैनवास कहीं स्टोर रूम में पड़ा होगा, गन्दा होगा।  चलो मान लो मैं लेता भी औ सफाई करके लेकिन इस अँधेरे में उसकी धुल अच्छे से नहीं जाएगी और तुम्हे तो बाबू धूल से दिक्कत हुए जात है।  फिर तबियत ख़राब हुए जावेगी तो किसकी जान पे बनइहें।  उसकी इतनी पटर पटर सुन के मुझे रंज हुआ और हसी भी आई कि मैं इसका मालिक हूँ या ये मेरा।  मेरी बात मानना तो कोसो दूर उल्टा मुझे ही नसीहतें दे रहा है. मैंने इस बार थोड़े  कठोर अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल करके कहा- जितना कहें तोहरा से  वो करो, झूठ की हमेशा अपनी बोलती ना बतियाया करो।  हमरे बाप ना होउ तुम औरे नाहिए बनबे की कौसिस करो।  अब मुंह ना निहारो औरो लै के आवो जल्दी से।  वो कमरे से निकला तो बाहर लेकिन  उसकी गुस्से से भरी चाल मुझे समझ आ गयी थी।  थोड़ी देर बाद मेरे कमरे में आवाज़ आई। मुझे सब पता था वो मेरी बावर्ची पर मेरा गुस्सा उतार रहा था।  इतनी बार समझाएं हैं तुमका सब जगह में अपनी नाकिआ ना घुसेड़ो पर नाही हमरी तो कौनो सुनता कहा हैं।  बाबू को भी पता नहीं उ सफ़ेद जंतर पे अभी क्या करना है।  अब अभी मिहनत करके उ को साफ़ करो और काल जब बााबु के तबियत खराब होइ तो बाबू के सेवा में जीवन ख़राब करो।  हम तो पागल हैन ऐसे ही कुच्चू बोल देत हैं हमरी तो ससुरी कौनो भेळू ही नहीं है।

 मैं बहुत तेज़ हंस पड़ा फिर सोचा की अभी जो कि अभी जो मन में है उसे पहले कैनवास पर उतार लूँ फिर अफसरी रुतबा रखने वाले अपने नौकर से भी माफ़ी मांग लूंगा। मैं फिर खिड़की के पास जाके खड़ा हो गया और ढलते सूरज को निहारता रहा।  मेरी तन्द्रा टूटी जब ठक की आवाज़ के साथ मेरा कैनवास मुझे देख के मुस्कुरा रहा था, मैंने भी जवाब में उसे एक मीठी मुस्कान  दी।  मैंने जल्दी जल्दी अपने ब्रश और पेंट पास रखे टेबल पर फैला दिया।  थोड़ी ही देर में मेरे हाथ मेरा कैनवास और मेरी आत्मा तीनो इन रंगों में डूबे हुए थे।
लगभग तीन घंटे कर मिहनत के बाद कैनवास पर एक खूबसूरत लड़की की तस्वीर उभर कर आई।  शिफॉन की हलके गुलाबी रंग की साड़ी में वो लड़की यक़ीनन कहर ढा रही थी।  बादलों के बीच बारिश में भीगी वो लड़की की छवि इस पेंटिग में जान भर रही थी।  घने काले बाल  उसके सीने को छूते हुए उसकी पतली गोरी तक गिर रहे थे और उन केशुओं के गुच्छे से ओस की बूंदो की तरह गिरता पानी अमृतधारा की तरह लग रखा था।  मृगनयनी सी उसकी आँखें के अंदर झांकते ही किसी के अंदर भी मृगतृष्णा जीवित हो उठेगी।  गुलाब की पंखुरी की तरह सोमरस से भरे उसके होंठ उसके मोतियों की तरह दाँतो के अंदर दबे थे।  शिफॉन की साड़ी बारिश में भीगी हुई उसके बदन से पूरी तरह चिपटी हुई थी और उसके शरीर केकी बनावट अच्छी तरह बयान कर रहे थे।  उसकी मांसल शरीर पर उसके गंठे और सुडौल वक्ष से उसकी साड़ी थोड़ी सी सरक गयी थी और उसके बाएं तरफ उस काले तिल की तरफ सबका आकर्षण लेने में पूरी तरह सक्षम थी।  ऐसे बड़े सुडौल वक्ष ,  रसभरे होंठो को  हर इसान ख़ुद के लिए   सुनियोजित करना चाहेगा  और उसके हाथ में पड़े strawberries की तरह उसका स्वाद लेना।  चाहेगा।   मैं खड़े होकर  बड़ी ही गंभीरता से अपनी पेंटिंग को निहार रहा था तभी मेरा नौकर  आया- मालिक बहुत शाम हुयी है खाना खाई लो लो।


 तभी उसकी नज़र मेरी पेंटिंग पर पड़ी और वो चिल्लाता हुआ नीचे दौड़ गया चलो भाई अब सामान पैक करने की तैयारी शुरू कर दो. कितनी बार हम मना किये की मत करो इह सब काम  हमरी कछु सुनते  हैं।  पिछले ६ महीने में ५ मकान बदली करे चुके हैं और लियो अब छठा।  उधर मेरा नौकर चिल्ला रहा था इधर मैं सोच रहा था की थक गया हूँ खुद से खुद ही भागते हुए. कितनी किताबें  पढ़ी , कितने दार्शनिक विचारधारा वाले लोगो की सानिध्य में रहा लेकिन आज भी मेरे अंदर का सामंती पुरुष एक औरत को एक सामान और भोगने वाली चीज़ समझता  और उससे ज़्यादा कुछ नहीं कुछ भी नहीं।  मेरे अंदर की निराशा के विषाद ने मुझे फिर से खुद में जकड लिया और मैं सोचने लगा की शायद अगली जगह घर बदलने से शायद मेरी सोच भी बदल जाए।  इतनी खूबसूरत पेंटिंग में अभी भी कुछ अधूरा सा है






Saturday, November 22, 2014

ख़्याल और ख्वाहिशें

ख़्याल  और ख्वाहिशें  काश की एक दूसरे  का पर्याय होतीं। …
ज़िन्दगी वाकई कितनी गुलज़ार होती ना ?
मालूम है ये मुमकिन नहीं , महज अफ़सानों  में ताक़ीद  हैं इनकी
ख़ैर  ज़िन्दगी छोटी सी  मिली है हमें ,
तो सपने और हक़ीक़त को जोड़ने की ये कोशिश,  
भी तो हम इसी छोटी सी ज़िन्दगी में करेंगे ना?

आप कह सकते हैं , टोक भी सकते हैं अगर आपको मेरी बात तर्कसंगत ना लगे तो। .

 छोटी सी कहानी याद आ गयी ,  बचपन में माँ सुनाया करती थी।  आपने भी सुनी होगी।   वही सपनों और हक़ीक़त की कहानी।

मेरी माँ हमेशा ही किताबों में गुम रहती हैं । न ज़्यादा किसी से बोलना और ना ही ज़्यादा किसी से मतलब रखना।  लेकिन हाँ किसी की मदद करने में कभी पीछे नहीं हटी , मदद चाहे जैसी भी हो.  . आर्थिक , शारीरिक या फिर मानसिक। मानसिक यूँ  कि  लोग माँ के पास आकर अपना दुखड़ा रोते थे और माँ चुपचाप ध्यान से उनको सुनती थी।  चूंकि माँ को बोलने की ज़्यादा आदत तो थी नहीं ,लोग आकर अपना  फ़्रस्ट्रेशन निकालते थे और चले जाते थे.  जैसे माँ भारतीय डाक सेवा का चौबीसो घंटे देने वाली सेवा का काम करती  और लोग कभी भी आकर भारतीय डाक सेवा का पोस्टबॉक्स समझकर अपनी चिट्ठी और दरख्वहस्त  डालते रहते थे . इन चीज़ो को देखकर बहुत कोफ़्त होती थी बचपन में मुझेऔर ग़ुस्सा भी आता था।   मैं माँ को पूछती थी आपको ग़ुस्सा नहीं आता कि लोग आपको use कर रहे हैं और यहाँ से बाहर जाते ही आपकी बुराई करते हैं.  माँ पूरे शांत चित्त से जवाब देती थी की ऊपरवाला भगवान  सब देख रहा है और अगर आप अच्छे हैं तो वो आपके साथ कभी कुछ बुरा नहीं होने  देगा।

 ये बात बचपन से ही ज़ेहन में बैठ गयी की अच्छे काम करो  भगवान है ना आपके साथ  बुरा नहीं होने देंगे।  लोग भले ही आपके लिए कितना भी बुरा सोचें और आपके ख़िलाफ़ किसी भी तरह की साज़िश करें।  माँ एक बात और भी बोलती थी कि जो होता है वो अच्छे के लिए होता है इसलिए तुम बस कर्तव्यबोध रखो अपना अधिकार क्षेत्र बस मुझ तक सीमित रखो।  माँ की इन्हीं बातों की गाँठ इस कदर कसकर बाँधी थी कि अब लाक कोशिशों के बाद भी ये जिरह खुलते नहीं खुल रहे।  बात बचपन की, जिसे गुज़रे भी ज़माना हो गया लेकिन कमबख़्त उंगलिओं में गाँठ पर गयी लेकिन माँ की सिखाई गयी इन बातों की गाँठ नहीं खुली।

 आज २२ साल बाद भी कुछ नहीं बदला ।  माँ की बाँधी गयी वो गाँठ, लोगों का माँ के पीछे उनपर  हँसना फिर भी माँ का बिना किसी स्वार्थ के उनकी मदद करना।   बस माँ की लाइब्रेरी में किताबों की गिनती ज़्यादा हो गयी है और माँ की तरह मेरी ज़िन्दगी में भी लोगों का मज़मा लग गया है।  एक लम्बी फ़ेहरिश्त लोगों की जो आपको निचोड़ना चाहते हैं।  फिर भी  लोगों के  आँखों में आपके लिए वही तिरस्कार और वितृष्णा दिखती है।  मुझे भी अच्छे से मालूम है और माँ को भी हम चाहे कुछ भी कर लें हम इन लोगों के लिए तिरस्कृत ही रहेंगे।

 लेकिन , साहब यही तो एक ख़्वाहिश है मेरी जो काश लोगों के ख्याल से मिलती।  दोनों एक ही तरफ जा  रहे हैं लेकिन समानांतर।  मेरी माँ और मेरा एक सपना जो शायद ही कभी  हक़ीक़त का चेहरा देख पाए।  देखा सही लिखा था ना मैंने कि ज़िन्दगी छोटी सी है तो सपने और हक़ीक़त को जोड़ने की ये कोशिश भी तो हम इसी छोटी सी ज़िन्दगी में करेंगे ना।  एक मिथक कोशिश !!!

Monday, May 7, 2012

चुनावी समीकरण या सेमिफाइनल ....

जनवरी 2012 में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव करने के चुनाव आयोग के फैसले ने 2012 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक पृष्ठभूमि तैयार कर दी है या फिर यूँ कहें की जनवरी 2012 में हुए पांच राज्यों का चुनाव 2014 चुनाव का सेमीफाइनल मैच था। इन चुनावों के नतीजे  बिलकुल ही आश्चर्यजनक  हुए जो की कहीं न कहीं 2014 कहानी बयान कर रहे हैं... इस चुनावी नतीजे के तीन मुख्यतः कारण हैं।..पहला कारण है 2 बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश और पंजाब में कांग्रेस को मिली बड़ी असफलता और upa सरकार में खुद कांग्रेस की political authority का ह्रास होना। दूसरा बड़ा कारण है क्षेत्रीय पार्टियां जैसे की समाजवादी पार्टी और अकाली दल का बड़े चेहरे की तरह सामने आना और साथ ही साथ अन्य छोटी छोटी  क्षेत्रीय पार्टियों का इन बड़ी क्षेत्रीय पार्टी में विघटन... तीसरा कारण है upa सरकार की इस आपदा का फायदा उठाती upa में शामिल दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यानी की तृणमूल कांग्रेस। तृणमूल कांग्रेस की तरफ से खेला गया राजनितिक खेल कांग्रेस के लिए हर तरह से खतरनाक साबित हो रहा है। 

कांग्रेस सरकार पर चुनावी नतीजों की काली छाया उन नतीजों के बाहर आने से पहले ही मंडराने लगे थे। पूर्व रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता दिनेश त्रिवेदी ने बहुत पहले ही कहा था की मध्यावधि चुनाव जल्द हो सकते हैं और उन्होंने अपने इस बयान  का सही ठहराते हुए यह बयान दिया की अगर वो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव होते तो वह देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य होने का फायदा  उठाते हुए  लोकसभा के मध्यावधि चुनाव तुरंत करने की मांग करते। 

upa सरकार में शामिल कई नेताओं के लिए त्रिवेदी का ये बयां बहुत ही तर्कसंगत लगा। उन्होंने ज़रूर सोचा होगा की 2014 चुनाव से पहले ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीट अपने नाम कर लें ताकि  तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी से वोटों के नाम पर  मांडवाली करना आसान हो जाईगा जैसे की आज तृणमूल चकों ग्रेस के लिए हैं।

हास्यास्पद स्थिति तो तब हुई जब अपने इस वक्तव्य के बाद त्रिवेदी ही मध्यावधि चुनाव के जल्दी होने के कारण नज़र आने लगे जब तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और  पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने रेलवे किराया बढाने जाने पर त्रिवेदी के इस्तीफे की मांग पकड़ कर ममता दीदी बैठ गयी थी।..उन्हें बहुत ही समझाने की कोशिश हुई लेकिन वो अडिग रही और अंततः हमारे माननीय प्रधानमन्त्री को ममता की जिद्द के आगे झुकना पड़ा।  त्रिवेदी क अपने पद से  इस्तीफ़ा देना पड़ा लेकिन इस बात से क्या सचमुच मध्यावधि चुनाव किये जाने पड़ते इस बात को देखने से हम चूक गए। बहरहाल विधानसभा चुनाव परिणाम ने क्षेत्रीय पार्टियों को और भी मज़बूत पक्ष में लाकर खड़ा कर दिया है और ये शक्तियां upa सरकार के बाहर और भीतर दोनों ही तरफ  से सरकार पर दबाव बनाने के लिए हमेशा तत्पर हैं।

6 मार्च के चुनावी परिणाम ने मध्यावधि चुनाव के जल्दी होने की आशंका को और भी प्रबल कर दिया हैऔर इस प्रबल आशंका को सहमती की मुहर लगाने के लिए राजनीति  के बाज़ार में एक नयी चीज़ लेकर आये हैं हमारे गृह मंत्री पी चिदंबरम साहब और इस चीज़ का नाम है एनसीटीसी.. फिर भी किसी भी तरह हर कहर से खुद को बचती बचाती हुई upa सरकार  2014 से पहले मद्यावधि चुनाव से बचना चाह रही है। 

कांग्रेस सरकार का खुद को मध्यावधि चुनाव से बचाने का इक मात्र कारण है 2012 विधानसभा चुनाव के परिणाम। 2012 चुनाव का परिणाम देश की दोनों बड़ी पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी के लिए बुरा साबित हुआ। बीजेपी को भी क्षेत्रीय पार्टियों के हाथ मूकी खानी पड़ी। saffron party ने फिर भी पंजाब और गोवा में जीत हासिल की और उत्तराखंड में भी अपनी शाख को बचाए रखा। फिर भी rss का ये मानना है की जिस तरह से ये कुछ पार्टियां सामने आ रही हैं उस हिसाब से बीजेपी के लिए 2014 के चुनाव में  पूर्ण बहुमत से जीत पाना मुश्किल है। 

बहरहाल 2012 के चुनावी नतीजों से ये साफ़ हो गया है की देश की जनता केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों से दुखी हो चुकी थी और उन्हें सत्ता परिवर्तन चाहिए थ... और इस परिवर्तन की मांग उन्होंने सरकार की नाकामयाबी हाही , महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान होकर की थी और इस बात पर भी गौर किया गया की देश की जनता राज्य सरकार से ज्यादा केंद्र सरकार पर कुपित है। 

इस विधानसभा चुनाव परिणाम का असर न सिर्फ दो बड़ी पार्टियों पर  पड़ा है बल्कि पंजाब और उत्तरप्रदेश में सत्ता में पीढ़ी परिवर्तन भी हुआ है। इस चुनाव में अखिलेश यादव और सुखबीर सिंह बादल जैसे दो कम उम्र और बड़े चेहरे सामने उभरे। दोनों चेहरे क्षेत्रीय पार्टियों की राजनीतिक उपलब्धि और राजनीति, प्रशासन, विकास और अर्थव्यवस्था के  क्षेत्र में नयी सोच बनकर उभरे हैं। 38 साल के अखिलेश यादव ने न सिर्फ सपा की तरफ से पार्टी प्रचार के जिम्मा अपने कंधे पे उठाया बल्कि अपनी मिहनत के कारन राज्य का दारोमदार भी अपने कंधे पर लिया...अपने CAMPAIGN ने अखिलेश ने इस तरह के स्लोगन्स का उपयोग किया था जो न की सिर्फ  मुस्लिम और यादवं का वोट बैंक बटोरने के लिए बनाया गया था बल्कि तरक्की और तकनिकी के नुस्खों से भी लैस था। अखिलेश यादव के प्रचार के इस तरीके  ने 1 बात तोह साफ़ कर दी है की अखिलेश में अपने पिता की तरह राजनितिक गुण भरे हुए हैं और साथ ही साथ उन्हें ये भी पता है की आज की  पीढ़ी को क्या चाहिए तभी तो अखिलेश सामंती सोच रखने वाले लोगों को साथ रखते हुए नयी पीढी का वोट अर्जन भी कर पाए।  इससे एक और बात साफ़ है की अब ये भ्रान्ति बिलकुल ही मिट जानी चाहिए की ये बड़ी बड़ी पार्टियों के नाम पर अब वोट पाना आसान होगा क्यूंकि अब वोते हमारी नयी पीढ़ी भी देती है जिस पीढ़ी को आपकी पारिवारिक उपलब्धि नहीं वरन आपके काम से... 

वहीँ जहाँ अखिलेश और सुखबीर सिंह बदल की झोली में सफलता आई वहीँ देश की सबसे बड़ी राजनितिक पार्टी के राजकुवर राहुल के हाथ आई हार। 2010 के बिहार चुनाव में पार्टी महासचिव पार्टी को सफलता नहीं दिला पाए वहीँ 48 दिनों में 211 रैली करने के बाद भी कांग्रेस उत्तरप्रदेश में बस 28 सीटों पर जीत दर्ज करा पायी जो  की 2007 की  22 सीटों पर बढ़त तिथि। सबसे शर्मनाक तोह था गांधी परिवार के गढ़ रायाबरेली और अमेठी में कांग्रेस की 2012 चुनाव में हार। राहुल की हार यानी की कांग्रेस की इस हार का सबसे बड़ा  कारण था राहुल गाँधी के प्रचार के तरीको का आम जनता तक न पहुचना। कभी कभी तो  ऐसा लगता है की राहुल ने COMMUNICATION की THEORY पर कभी गौर नहीं किया जो कहती है की FEEDBACK IS A MUST IN A SUCCESSFUL COMMUNICATION.यानी की राहुल अपनी बात  लोगों तक रखते हैं लेकिन व बातें लोगों क समझ आये न आए इससे राहुल को कोई दरकार नहीं है। इन सबसे भी बड़ी मजेदार बात ये है की कांग्रेस की दुरा स्तिथि को देखने के बाद भी कुछ कांग्रेसी नेताओं का कहना है की पार्टी की शाख बचाने का इकलौता रास्ता ये है की राहुल गाँधी को प्रधानमत्री बना दिया जाए ताकि देश की स्तिथि और उससे भी ज्यादा देश 
 देश में कांग्रेस की स्तिथि में सुधार होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं की विधानसभा चुनाव ने दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों को मंझधार में छोड़  दिया है और   REGIONAL PARTIES बड़ी ताक़तें बन कर उभर रही हैं और ब्वाहीं दूसरी तरफ UPA 2 सरकार का तख़्त हिलता हुआ नज़र आ रहा है क्युकी लोगों के हिसाब से 2010 से ये पार्टी LAME DUCK की तरह काम कर रही है।इसका इक मात्र उपाई ये है की कांग्रेस को अब अपने गठबंधन सरकार के साथ बिलकुल ही ध्येय  के साथ काम करना होगा जैसा की सोनिया गाँधी 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले करती थी।.अब देखना ये होगा की क्या कांग्रेस फिर से एक मजबत पार्टी बनकर उभरेगी ? इस सवाल का जवाब अभी तक सुदूर में भी  हाँ में नहीं दिख पा रहा है लेकिन यदि फिर भी ऐसा होता है तो भी मुलायम, अखिलेश, नितीश इक बड़े FACTOR बने रहेंगे।

Friday, December 30, 2011

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था....
सरे बस ये रात क्या हुआ...
मेरी आँख कैसे छलक गयी...
मुझे रंज है इस बात का   ....!!!!!

Sunday, November 6, 2011

पीछे मुड़कर देखा तो....

महीनो बाद आज मेरे ज़हन में आया कि अब बहुत हो गया कुछ लिखना चाहिए वरना अपनी अभिव्यक्ति की शक्ति जिसपे मुझे थोड़ा नाज़ है उससे हाथ धो बैठूंगी... बस क्या था जब देखा की सब अपने अपने काम में व्यस्त हैं... मैंने सोचा कि चलो आज अपनी कलम कि नीव पे जो स्याह परत बैठी है उसे उतार दूँ.... अब बात आई कि लिखने तो मैं बैठ गयी लेकिन लिखूं क्या....फिर अचानक नीलेश मिश्रा का यादों का idiot  बॉक्स प्रोग्राम याद आया... सोचा क्यूँ न मैं भी कुछ वैसा ही लिखने की कोशिश करूँ....


        ऐसा पहली बार हुआ है सत्रह अठरह सालों में
        कोई आये जाए मेरे ख्यालों में.....

समय के साथ लोगों की सोच बदली और उसके साथ बदले गाने और उन गानों का मतलब ..... सुमित सुबह सुबह इस गाने को गुनगुनाते हुए अपने घर में घूम रहा था... तब शायद उसे ये भी न पता था कि ये प्यार किस बाला का नाम है... बस जी गाना था बिलकुल लेटेस्ट था तो वो गा रहा था.... अचानक उसे याद आया कि इस गाने के चक्कर में वो कॉलेज के लिए लेट हो रहा है... उसने दौड़ते भागते हुए अपने सारे काम ख़त्म किए और लगभग उससे भी दोगुनी रफ़्तार से सीढियों से नीचे उतरते हुए अपनी माँ को चिल्ला कर कहता है- माँ मैं कॉलेज जा रहा हूँ लौटते हुए निगम के घर जाना होगा तो लेट हो जाऊँगा... दरअसल उसके चिल्लाने का मकसद ही कुछ और था .... वो अपने पापा से बहुत ज्यादा डरता था... उनसे सामने पूछने कि हिम्मत न थी तो उन्हें सुनाते हुए जल्दी से भाग गया......
                  गलत ना तुम थे ना हम थे.....
                  खता इस उम्र की देहलीज़ की थी.... 
पता नहीं ये अक्सर हर घर में देखा जाता है कि बेटा अपने बाप के पास जाने से डरता है... उससे हर बात करने से डरता है... माँ का क्या है उसे तो अपने बच्चों कि हर बात ही अच्छी लगती है.... हाँ तो हम यहाँ थे ... सुमित जल्दी से अपने डे प्लान सुनाता हुआ घर से निकल आया... इससे पहले की पापा की तरफ से ना जाने का फरमान जारी किया जाता.... गाते से बहार आते ही उसने राहत की सांस ली की बेटा अब बच गये.... bike निकाली और लगभग उड़ाते हुए कॉलेज पहुच गया....
                  यूँ हवा से बात करना अच्छा लगता है....
                   मुझे दिन रात करना अच्छा लगता है.....

सुमित कॉलेज के सेकंड इयर में पढता था, दरअसल आज ही उसके सेकंड इयर की पहली क्लास थी.... उसके excitement  की उससे भी बड़ी वजह ये थी कि आज उसके जुनिअर्स आने वाले थे... उसे आज अपने फर्स्ट इयर का पहला दिन याद आ रहा था ... जब उसके seniors  ने उसकी ragging  ली थी.... आज उसका दिन था ... आज उसके सामने कई नए चेहरे होने वाले थे जिनकी ragging उसे लेनी थी... कॉलेज पंहुचा अपनी bike  लागायी और दौड़ के पहुंचा कैंटीन की तरफ... जहाँ उसके friends उसके इंतज़ार कर रहे थे.... वहां बहुत ज्यादा भीड़ थी... उसे समझ में आ गया कि उसके शिकार पहले ही वहां आ पहुचे हैं... उसने और उसके दोस्तों ने 
नए बच्चों की जमकर क्लास ली... तभी उस भीड़ में उसे १ घबरायी सी शक्ल दिखी.... उसने उसे आवाज़ दी.... वो आगे आई.....  उसने उसकी सुरमेदार आँखों में देखा...
                        आज तक ज़ब्त था जो कहीं दिल में...
                        उसकी एक निगाह ने मरहूम कर डाला...
                        बेमुर्रव्वत है वो पलकें ज़ालिम....
                        जो लुटने के बाद भी बंद ना हुई....
 सुमित को तो होश भी नहीं था कि वो कुछ पूछने लायक ही ना बचा.... जब उसने किसी और जवाब में बताया कि उसका नाम श्रुति है तब जाके उसे होश आया... वरना उसे तो पता ही ना था कि वो कहाँ  गुम हो गया था... बेल हुई और सब अपनी अपनी क्लास कि ओर बढे... डिजाईन की क्लास में हमेशा से इंटेरेस्ट लेने वाला सुमित पता नहीं आज कहाँ खोया था... कॉलेज ख़त्म हुआ और वो अपने घर की तरफ निकल पड़ा... सुबह घर से चिल्ला के निगम के घर जाने का फैसला सुनाने वाला सुमित घर की तरफ निकल आया... घर पंहुचा तो माँ ने पूछा जल्दी घर कैसे आ गया ??? वो क्या जवाब देता... उसे तो खुद ही पता ना था... वो मुड़ गया अपने कमरे की तरफ...

आजकल सुमित रोज़ ही junior विंग के चक्कर लगाने लगा है... कभी किसी बहाने से तो कभी किसी बहाने से.... बस जाने का कारण १ ही है.... श्रुति भी इस बात को अच्छे से समझने लगी थी .... सुमित एक दिन अपने दोस्तों के साथ खड़ा था ... तभी वहां से वो गुजरी... उसके दोस्तों ने उसे रोक लिया और कहा कि १ गाना सुनाओ... और उसने बिना रुके १ नगमा सुनाया....
                                मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने...
                                 अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन....
                                सोचता हूँ मुझे आये थे उठाने कितने....
                                अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है....
                                 सोचते होंगे ये बात ना जाने कितने....   
                                 अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                तुम नया ज़ख्म लगाओ तुम्हें इससे क्या है...
                                भरने वाले हैं अभी ज़ख्म पुराने कितने... 
                                अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने...  

सुमित को अचानक लगा कि जैसे उसे अब सांस लेने में मुश्किल हो रही है... श्रुति सब समझ चुकी थी.... वो वहां से भाग गया.... अगले दिन कॉलेज आया तो श्रुति उसके पास आई... कुछ कहा नहीं बस १ कागज़ का टुकड़ा उसे पकड़ा कर चली गयी... उसने उस चिट्ठी को खोला...
                              
                                 माना कि मोहब्बत को छुपाना है मुहब्बत....
                                 तू कभी मोहब्बत जताने के लिए आ... 

आज उनकी पहली डेट थी... जी हाँ सुमित और श्रुति कि डेट... सुमित ने सोचा कि उसके लिए क्या लेकर जाए... फिर उसने उसके लिए तोहफे में  १ खूबसूरत  कलम खरीदी.... उसने वो कलम श्रुति को दी.....

                                 लाया वो मेरे लिए स्याही लाल...
                                 तोहफे के पैगाम ने मुझे लाल कर दिया... 

इस तरह दो साल बीत गए और सुमित कॉलेज से निकल गया... उसकी नौकरी १ अच्छे firm  में लग गयी... वो खुश था .. बहुत खुश... लेकिन वहाँ कोई था जिसे इस खबर से ख़ुशी तो हुई लेकिन दिल का १ कोना सिसक भी रहा था.... सुमित ने उसे समझाया था... पागल अगले साल तुम्हारी पढ़ाई ख़त्म होतेही हम इस लायक हो जाएंगे कि हम शादी कर सकें... तुम बस पढ़ाई में मन लगाओ... बाकी तो हम हर वीकेंड पर मिलते ही रहेंगे... वो हँसी .. एक फीकी मुस्कान ... लेकिन आज उस चेहरे पर वो रौनक नहीं थी.... उन आँखों में वो नूर दूर दूर तक नहीं था...
                          गुम ए जुदाई है बहुत मुश्किल...
                          काश कि ये भी बचपना होता...
                          १ खिलौने से बहल जाता ये दिल....
                          इसमें ना ज़ब्त कोई गम पुराना होता....

दिन बीतते गए.... सुमित अब busy  रहने लगा था .... ऑफिस के काम के बाद खुद के लिए वक़्त निकालना भी तो मुश्किल हो रहा था... फिर उसे उसकी पढ़ाई ख़त्म होने तक अच्छे से settle  भी तो होना था.... इस भागमभाग में उसे उससे मिलने का वक़्त नहीं मिल पाता था... श्रुति को लगा कि सुमित बदल गया है... उसे बस कॉलेज तक उसकी ज़रूरत थी.... अब उसे शायद ऑफिस की किसी लड़की से मोहब्बत हो गयी है...

                              मर भी जाऐं मुहब्बत में तो 
                              काफिर ही कहलाएंगे....
                              जीना तो चाहते हैं मगर....
                              जीने का एहसास तो हो...

पता ही ना चला कब १ साल बीत गया... आज श्रुति का एक्ज़ाम ख़त्म हो गया.... वो १ प्यारा सा फूलों का bouquet लिए कॉलेज के गेट पर खड़ा था... इस इंतज़ार में कि कब वो आएगी और वो उसे खुशखबरी सुनाएगा... वो आई... उसके चेहरे पर आज भी वही मासूमियत थी... आज भी आँखों में वही नूर था... हाँ वो बिलकुल वैसी ही थी... वो उससे उसी मुस्कराहट के साथ मिली.....
लेकिन ये क्या... आज उसके कंधे पर हाथ रख कर चलने वाले हाथ बदल गए थे.... ये तो उसके हाथ नहीं थे श्रुति के कंधे पर... वो लड़का था कौन... उसने श्रुति से पूछा...  उसने अपने चेहरे पर अजीब सी मुस्कुराहट सजाते हुए कह... तुम ये हक खो चुके हो सुमित..... वैसे आज तुमने ये पूछ लिया है सुनो... ये मेरा fiance है... मैंने तुम्हारा बहुत इंतज़ार किया लेकिन तुम नहीं आये... तुम्हें याद है वो पेन जो तुमने मुझे दिया था... तुम्हारे इंतज़ार में मेरा दिल उस लाल स्याही कि तरह खून के आंसू रोया था... लेकिन तुम नहीं आये... पापा ने मुझे इनसे मिलवाया और मेरे पास और कोई भी चारा नहीं था हाँ करने के अलावा... क्यूंकि मैं जिससे प्यार करती थी वो मेरे पास नहीं था....मेरे साथ नहीं था... इतना कह कर वो चली गयी....
उसके जाते ही सुमित आज दूसरी बार नींद से जगा था... पहली बार जब उसने श्रुति को पहली बार देखा हा और आज जब वो उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयी थी... उसने कहने का मौक़ा भी नहीं दिया कि उसने श्रुति के लिए घर ख़रीदा है जहाँ वो शादी करके रहने वाले थे...और तो और उसने अपने हिटलर बाप को भी मना लिया था उनकी शादी के लिए... कुछ नहीं कह पाया वो कुछ भी नहीं.....
                    
                                आज बीती बातों को सोच कर दिल हँसता है...
                                 वो पल आज भी मेरे दिल में आशना हैं....
                                तेरी भीगी पलकों पे रुका वो मोती याद है...
                                 शीशे कि तरह उतरता तेरा हर लफ्ज़ याद है....

अपनी खिड़की से बाहर बर्फ से घिरा हुआ मंज़र देख कर उसे बर्फ सी ठंडी से यादें ज़र्द कर गयी... मुक़र्रर तो वो कभी ना था...  मसलाहट भी कोई और ना मिली.... आज उस बात को दस साल बीत गए... लेकिन आज भी वो ज़ख्म उतने ही गहरे हैं... आज भी वो खुद को काम में मशरूफ रखता है .. लेकिन ऑफिस बंद होने कि वजह से उसे अपने यादों कि पोटली को खोलने का मौका मिल गया.....

                                     यादों का सफ़र खोलो तो ...
                                     कुछ लोग याद आ जाते हैं....
                                     कभी मिले या ना मिले....
                                     कुछ दर्द छोड़ जाते हैं.... !!!!!


                                
                                                                        

Monday, October 31, 2011

सहर....

चाहिए एक नयी ज़मीन
 जहाँ न कुछ भी पुराना हो...
न कोई भी डर रहे
  न कोई गम पुराना हो...
काश इस काली स्याही को
 हकीक़त की मुहर मिल जाए...
अब थक चुकी हूँ मैं
 इस शाम को नयी सहर मिल जाए... ... !!!!

Sunday, October 16, 2011

बहुत दिनों बाद आज मैं कुछ लिखने बैठी...
मालूम हुआ कि मेरी सोच को दीमक लग चुका है...
कुछ नया ख्याल ज़हन में नहीं आता अब...
कोरा कागज़ भी निकाल जीभ मेरी बेबसी पे चिढ़ा रहा है.... ...!!!!!