Thursday, April 28, 2011

lamha...

लम्हें आज गुज़र जाने को है
मगर फिर भी इक ठहराव सा है
मन में इक बेचैनी सी है
जैसे कहीं इक कोने में
जल रहा भयानक अलाव है
चाहती तो मैं यही थी
कि कब ये लम्हा बीत जाए
लेकिन क्यूँ खो जाने का डर 
मेरे वुज़ूद को झंकझोर रहा है
दिल और दिमाग में आज फिर
वही द्वन्द युद्ध चल रहा है
किसने कहा मैं खुश हूँ
मेरा खुद ही मुझे काट रहा है
निशाँ पर चुके हैं मेरी रूह पे
ज़ख्मों के जो बहुत गहरे हैं
मलहम जो सोचा कर लूँ इन पर
ये तो उन लम्हों के लिए ही विह्वल हैं 
क्यूँ हर बार ये लम्हें खुद
मेरी घावों को कुरेदते हैं
मुझे प्यार नहीं अब रत्ती भर भी
फिर क्यों ये मेरी नफरत को तौलते हैं
लम्हा लम्हा वक़्त गुज़र जाएगा
ये सोच कर खुद को दिलासा दिया था
लेकिन वो भी खोखले निकले
जब ये लम्हें ही बागी बन गए
इनसे भागने कि कोशिश में 
मैं खुद से भागी थी इतनी दूर
सारी कोशिशें हुई बेकार  मेरी
वो आज भी खड़ी हैं होके मगरूर .................

Tuesday, April 19, 2011

naseeb....

देखा मैंने आज आसमाँ को बड़े गौर से
इक तरफ वो बादलों से था घिरा
और दूसरी तरफ वो काले साये से था जुदा 
कैफियत हुई ये देख कर मुझे अजीब सी
इक ही पल में कोई कैसे हो सकता है दोहरा 
अभी जिसकी तपिश ने संवारा था मुझको 
जिससे दगा की उम्मीद भी बेवफाई थी
झंकझोर दिया पल भर में ही मेरे ख्वाब को
झमझम करती बारिश की बूंदों की आवाज़ ने
अभी फिर से दिखी दूर कहीं मुझे नयी रौशनी 
लकिन वो भी पल दो पल को ही साथ रही
पलछिन साथ रहने का वादा देकर
मेरे नसीब में ये रातें ही आबाद रहीं...................

main.....

कौन कहता है मैं इंसान नहीं
गर जो  मुझे खिलौने पसंद हैं
फिर तो वो भी दरिंदा है
जिसे मेरी पहचान नहीं

हवश भरी हर उन आँखों में
हर चीज़ छीनना चाहता है 
मुझमे तो चाहत है एक 
जिसे हर बच्चा पहचानता है

बताशों को देख आज भी 
यह मन मेरा ललचाता है
बालों में आज भी वो हाथ
मुझे चैन की नींद सुलाता है

लोग फिर भी कहते हैं 
मुझमे सोचने की क्षमता नहीं 
अब बड़ी हो गयी हूँ मैं
मेरी उम्र को यह भाता नहीं

है मन में उठा इक सवाल मेरे
इनकी सुनूँ मैं तो क्यूँ सुनूँ
अगर बड़ी हो चुकी हूँ मैं
तो क्यूँ न अपने रास्ते खुद चुनूँ

सुन कर सबकी बातों को
जो अमल करना मैंने शुरू किया
बात तो फिर वहीं रुकेगी
है मैं का मैंने हनन किया

क्यूँ बदलूँ मैं उनके कहने पर 
अपने अस्तित्व को क्यूँ ख़त्म करूँ 
लड़ाई तो आज भी वहीं है 
मेरा मैं ही मेरी पहचान बने............

Monday, April 11, 2011

blame me.....

someday someway
we will find a new ray
somebody taught me
sitting on the dry hay

are you happy and gay
was what i was asked
till i sat very firm
suddenly got a flap

stunned for a while
decided to bid a goodbye
thought was i the culprit ?
why would i resign?

to continue the conversation
i asked to move on
blame me for all for sure but,
you too weren't a juvenile

if i am the one
who caught you in the flame
you were someone
preferred sinking in the same

better you stop the blaming session
better you stop the blaming session. . . . . 

Thursday, April 7, 2011

they wanted...........

They wanted therefore I am,
what I am today..
fighting like beasts on a normal issue,
thinking of self in the whole queue....
centred with "I" like none is beside,were I born the same here I reside...
nature no more seems natural,
be it sun moon & lilac color..
lie betrayal beguile cheating,
all mischieves have settled in...
If there anybody could answer,
send me back the past in the mirror...
would have stand & ask in front,
where have I lost all I had...
jingle bell & fairy tales no more up,
innocence love concern now sucks...
Ghandhi has lost his image of the hero,
his efforts now counts a zero...
"live and let other live" is framed still,
dominance and jealousy pumps itself to fulfill...

I AM NO NO MORE A HUMAN BUT A STONE...!!!!!!

laughing at the climax being brave,
the path of glory leads but to grave...
But the earth has formed its theory,
survival of the fittest & the glory...
very human is this of me,
cut some throats and set yourself free...!!!

kab talak.......

कब तलक ज़िन्दगी यूँ साथ देगी
कब तलक यूँ प्यार की बरसात होगी
कब तलक यूँ जूझते रहेंगे सब
कब तलक इक नयी शुरुआत होगी

कब तलक  बस आप ही सरताज होंगे
कब तलक बस आपका ही राज होगा
कब तलक घिसेंगी ये एड़ियां 
कब तलक नयी न कोई आग़ाज़ होगी

कब तलक आंसुओं के बूँद पीकर 
कब तलक बस इक फ़रियाद होगी 
कब तलक दूसरों की फरमाइशों पर
कब तलक साँसे यूँ बर्बाद होंगी

कब तलक इंसानियत की वजह से 
कब तलक हैवानों के हाथ होगी
कब तलक ख़्वाबों के कारवां पर
कब तलक सपनो में ही संवार होगी.......

Tuesday, April 5, 2011

yun hi...

गुमराह हूँ इन रातों में 
अँधेरे से खौफज़दा भी हूँ
संभालना मेरी इस रूह को
तेरे आने से गर ये बागी जो हो

कसूरवार वैसे ये भी नहीं
खतावार खुद को भी न समझ
ये तो शिरीन हैं तेरे लब
बदनसीब ही उनका कायल न हो.......     

dilli hai......

सफ़र कर रही थी मैं
आज हर रोज़ की तरह
मगर अचानक पाया मैंने
कुछ तो है घटा नया

नए चेहरे नयी सोच
लेकिन वही हडबडाहट है
किसी को दफ्तर जाना है
कोई कॉलेज के लिए लेट है

यहाँ हिन्दू यहाँ मुस्लिम
की चर्चा जोरो-शोर है
सामने बैठी एक छोटी बच्ची 
ताक रही सब ओर है

फैशन का ये ताना-बाना
आज दिख रहा पुरजोर है
calvin klein और versace के
packets में भी होड़ है 

सीट पर बैठी नयी पीढ़ी
बूढों को कर रही ignore है  
matching टी-शर्ट matching चप्पल
pepsi की तरह मांगे ये more हैं

spikes और i -pod है in 
ये दीखता हर रोज़ है
इनके बीच सूती की साड़ी
आज भी फबती बजोड़ है

यहाँ का जशन यहाँ की रातें
दिखती ताबड़तोड़ हैं
किलों से घिरी इस जगह
में रहते लोग करोड़ हैं
जो भी है जैसा भी है
हर रोज़ ये  नवीन है
इस पर भी न शक किसी को
कि दिल्ली सा न कोई और है........

Sunday, April 3, 2011

घुमते घुमते इक रोज़
मैं इतनी दूर निकल आया 
मुड़ना जो चाह मैंने
कहीं न मैंने सहर पाया

वक़्त फिसला कुछ ऐसे
रेत हाथो में समेटा हो
खूबसूरत कोई सपना जैसे
अभी अभी आँखों से लुटा हो

अब थक चूका हूँ मैं
चलते चलते अनजान डगर
कहीं से मिले मुझे
हो जिससे पहचान मगर...........