सफ़र कर रही थी मैं
आज हर रोज़ की तरह
मगर अचानक पाया मैंने
कुछ तो है घटा नया
नए चेहरे नयी सोच
लेकिन वही हडबडाहट है
किसी को दफ्तर जाना है
कोई कॉलेज के लिए लेट है
यहाँ हिन्दू यहाँ मुस्लिम
की चर्चा जोरो-शोर है
सामने बैठी एक छोटी बच्ची
ताक रही सब ओर है
फैशन का ये ताना-बाना
आज दिख रहा पुरजोर है
calvin klein और versace के
packets में भी होड़ है
सीट पर बैठी नयी पीढ़ी
बूढों को कर रही ignore है
matching टी-शर्ट matching चप्पल
pepsi की तरह मांगे ये more हैं
spikes और i -pod है in
ये दीखता हर रोज़ है
इनके बीच सूती की साड़ी
आज भी फबती बजोड़ है
आज भी फबती बजोड़ है
यहाँ का जशन यहाँ की रातें
दिखती ताबड़तोड़ हैं
किलों से घिरी इस जगह
में रहते लोग करोड़ हैं
जो भी है जैसा भी है
हर रोज़ ये नवीन है
इस पर भी न शक किसी को
कि दिल्ली सा न कोई और है........
कि दिल्ली सा न कोई और है........
you wrote what i felt..and exaclty the same...love sisto!
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