ik roz
Friday, September 30, 2011
आज बहुत दिनों बाद ये शिकायत हुई...
सबने माना कि हमें फिर से मुहब्बत हुई....
Thursday, September 15, 2011
चंद लम्हों के लिए
तुम ये सिक्के ज़ाया न करो
मेरे सिरहाने बैठो
मुझे ये पल महफूज़ करने दो
तस्दीक देते हैं
तन्हाई के मंज़र मगर
कह न पाए कभी
सह न पाएंगे आज जो ये लब चुप रहे
जानते थे हम
आवारगी पसंद है आदत तेरी
रुक तो जाते
मगर इंसानी रूह थी हावी रही.....
Thursday, September 8, 2011
छोड़ दो मुझे...
मेरी बात सुनो
वो राह चुनो
जिसमे हम न हो
कोई गम न हो
हम न साथ रहे
न वो जज़्बात बसें
मेरी बात सुनो
वो राह चुनो
Thursday, September 1, 2011
न छेड़ो हमें हम सताए हुए हैं...
बड़े ज़ख्म सीने पे खाए हुए हैं....!!!!
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