आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ
कागज़ कलम लेकर मैं बैठी इक कोने में
सोचा क्या लिखूं, किस बारे में लिखूं
फिर चाहा आज जो हुआ उसे ही मैं रच दूँ
क्या लिखूं फिर सोच में पड़ गयी मैं
बाहर इतनी गर्मी है इस बारे में कुछ लिखूं
या चिलचिलाती धुप और इस तपाती गर्मी में
लोग डर के घर में नहीं बैठे इस बारे में लिखूं
पानी वाला सड़क किनारे पानी बेच रहा है
इसके बारे में लिखूं या फिर उसका मन
जो पानी के पास रहते हुए भी प्यासा है, उस बारे में लिखूं
पटरी पर दौड़ती मेट्रो ट्रेन के बारे में लिखूं
या फिर उसके 'रुकावट के लिए खेद है' के इस बोल पर लिखूं
यहाँ हर कोने पर लगी सेल सेल सेल पर लिखूं
या कुर्ती और सलवार के इस मेल पर लिखूं
हर बार की तरह इस बार भी प्यार पर लिखूं
या ज़िन्दगी में हो रही प्यार की दरकार पर लिखूं
आज इक प्यारा खिलौना टूट गया मेरा
लिखूं इसपे, या फिर इस खिलौने पे निकले आंसुओं पर लिखूं
हर तरफ फैल रहे देह के व्यापार पर लिखूं
या फिर इस देह से हो रहे व्यवहार पर लिखूं
अभी तक नहीं समझ पायी किस बारे में लिखूं
क्या अपनी सोच में शब्दों के पड़े अकाल पर लिखूं...............