Wednesday, May 18, 2011

तेरा मेरा साथ........

हमउम्र है मेरा गम और तेरा मेरा साथ .|
ताउम्र लगता है रहेगा ये मेरे हाथ  . . ||





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तेरे आने की ख़बर सच है
इस ख़्वाब को ख़ारिज किया हमने
तेरे शौक़ को अपनाया था कभी
तसब्बुर में तुझे अपना बनाने के लिए
तेरी यादों का सहारा है अभी
पैमाने से उतरी उस जाम के बाद
इन दो घूँट में भी क्या ताक़त है
अकेला छोड़ गयी इक मीठी मुस्कान के साथ............     

Monday, May 16, 2011

क्या लिखूं .........

आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ
कागज़ कलम लेकर मैं बैठी इक कोने में
सोचा क्या लिखूं, किस बारे में लिखूं
फिर चाहा आज जो हुआ उसे ही मैं रच दूँ
क्या लिखूं फिर सोच में पड़ गयी मैं
बाहर इतनी  गर्मी है इस बारे में कुछ लिखूं
या चिलचिलाती धुप और इस तपाती गर्मी में
लोग डर के घर में नहीं बैठे इस बारे में लिखूं
पानी वाला सड़क किनारे पानी बेच रहा है
इसके बारे में लिखूं या फिर उसका मन
जो पानी के पास रहते हुए भी प्यासा है, उस बारे में लिखूं
पटरी पर दौड़ती मेट्रो ट्रेन के बारे में लिखूं
या फिर उसके 'रुकावट के लिए खेद है' के इस बोल पर लिखूं
यहाँ हर कोने पर लगी सेल सेल सेल पर लिखूं
या कुर्ती और सलवार के इस मेल पर लिखूं
हर बार की तरह इस बार भी प्यार पर लिखूं
या ज़िन्दगी में हो रही प्यार की दरकार पर लिखूं
आज इक प्यारा खिलौना टूट गया मेरा
लिखूं इसपे, या फिर इस खिलौने पे निकले आंसुओं पर लिखूं
हर तरफ फैल रहे देह के व्यापार पर लिखूं
या फिर इस देह से हो रहे व्यवहार पर लिखूं
अभी तक नहीं समझ पायी किस बारे में लिखूं
क्या अपनी सोच में शब्दों के पड़े अकाल पर लिखूं...............

Monday, May 9, 2011

बेहतरी तेरे आने की ख़बर आ गई...
रुख्सती का हमने था इंतज़ाम कर लिया.......
चाहत तेरी ये नागवार थी हमें.....
तेरी बस इक खामोशी ने हुक्मरां कर दिया......

Thursday, May 5, 2011

stri ki stithi............

यह लेख  मैंने तक़रीबन इक साल पहले लिखी थी, कई बार मन में हुआ कि इसे कहीं छपने के लिए भेजूं किन्तु मन में कहीं इक डर था अगर मेरी यह लेख नहीं छपी तो शायद मेरे अन्दर का लेखक पैदा होने से पहले कहीं समर्पण न कर दे | चूँकि ये लेख मेरे बहुत ही करीब है तो  मेरा यह डर मुझे बेहद जायज़ लगा . कल मैंने NDTV ख़बर औरतों पर लिखे कुछ लेख पढ़े तो हिम्मत हुई अपने  इस लेख  को इन्टरनेट पर समर्पित करने की| फिर सोचा मेरे खुद के ब्लॉग पलछिन  से अच्छी जगह और क्या होगी जो कि हर पल मेरे साथ होता है|आगे आपके लिए है मेरी कहानी आशा है शायद आप तक पहुँच जाए...................


                                                          स्त्री की स्तिथि 

          मैंने अभी हाल में किसी अखबार में पढ़ा की क्या कोई तहखानों में बंद किताबों को कभी भी पढ़ पाया है?क्या औरतों की कहानी भी कुछ ऐसी ही नहीं है? क्या इक औरत की ज़िन्दगी अँधेरे में दफ्न होने के लिए अभिशप्त नहीं है ? औरतों के पास कंठ है पर स्वर नहीं, मस्तिष्क है लेकिन चेतना नहीं| यहाँ पर औरतों की ये स्तिथि है कि उनकी राय हाशिये पर भी उपेक्षित ही मानी जाती है| उन्होंने अँधेरे को अपना सच मान लिया है और उसमे जीने की आदि हो गयी हैं| उजाले की चाहत उनमें बाकी ही नहीं है और उन्हें चतुराई से समझाया भी गया है कि अँधेरा उनकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए ज़रूरी है| जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि उनमें चेतना नहीं है इसलिए वो अँधेरे को अपनी नियति मान बैठी हैं|

            कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जहाँ औरत ही औरत के विरुद्ध आवाज़ खड़ी कर रही हैं| वह अपनी स्तिथि में इस प्रकार रम चुकी हैं कि वह इसे ही सत्य और सही मान बैठी हैं| यह बात भी कटु सत्य है कि इक औरत दूसरी औरत को पछाड़ कर कभी भी पुरुष की बराबरी नहीं कर सकती हैं| मेरे ख्याल से बहुत जगहों पर औरत ही हैं  जो पुरुष को भगवान् होने का खिताब देती हैं उसे उन्हें प्रताड़ित करने का हक या फिर कहें तो आमंत्रण देती है| औरत अपनी स्वतंत्रता और गुलामी कि अन्तःभावना के दो ध्रुवों को साथ लाना चाहती है लेकिन साध नहीं पायी कभी भी| ऐसी हरकतें अशिक्षित और पूर्णतः आश्रिता के लिए फिर भी स्वाभाविक है लेकिन शिक्षित उच्च पदस्थ औरतों का ऐसी बर्बरता चुपचाप सहना हैरान करता है और यही समाज ये औरतें विरासत में दे रही हैं अपनी बेटियों को| 
          
           कर्नाटक, तमिलनाडु, आँध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश के इलाकों में तथाकथित छोटी जाति की औरतों के पास वैश्यावृत्ति के अलावा जीवकोपार्जन का और कोई अतिरिक्त साधन नहीं है| उनके माँ-बाप बचपन में ही घर की सुख-शान्ति के लिए उनका विवाह भगवान् से करवा देते है और व्यंगोक्ति तो देखिये प्रभु से हुए विवाह के बाद नाम तो उन्हें देवदासी का दिया जाता है लेकिन वो काम करती हैं वेश्याओं का| बारह साल की उम्र की छोटी लड़किओं को इस मौत के कुएं में धकेल दिया जाता है| उनके बच्चे अपने पिता के साथ खेल नहीं सकते| अत्यंत कारुणिक तो उनकी बेटियों की स्तिथि है, वो कितना भी पढ़-लिख लें उन्हें अंततः उसी धंधे में खुद को झोंकना पड़ता है| कितना मुश्किल होता है इक माँ के लिए न चाहते हुए भी अपनी बेटी को उस रास्ते पर भेजना जहाँ सिर्फ शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक यान्त्रनाएं भी हैं| HOLY WIVES  में इक बच्ची जब माखन लाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा का पाठ कर रही थी तो मानो लग रहा था वो पुष्प की नहीं वरन उसकी अभिलाषा है  लेकिन उसके पास और कोई रास्ता नहीं है चुनने के लिए  इसके अलावा अगर उसे जीना है तो| 

           इक औरत की सीमाएं बहुत ही संकुचित है लेकिन इक पुरुष, इक पति देवदासियों के पास आनंदप्राप्ति के लिए जाता है और इक पत्नी को इससे किसी भी तरह की दिक्कत नहीं होनी भी चाहिए और अगर है भी तो उन्हें तो अँधेरे में धकेला ही गया है ताकि वो कुछ देख न सकें या फिर न देख पाने का छद्म करें| वे संबंधों की गरिमा के निर्वहन के प्रति सचेत, अपनी पीड़ा के गरल को खामोशी से घूँट रही है|  'स्व' विहीन स्त्री काठ की कठपुतली बन कर रह गयी है और यह आज का बहुत भयावह सत्य भी है कि पुरुषों कि सामंतवादी सोच आज भी स्त्री को 'मात्र देह' रूप में देख रहा है लेकिन अब ऐसी आवाज़ ढूँढने कि ज़रूरत है जो देह बनने से इनकार कर दे|

                                              है ख्वाहिश इक नए आसमां की|
                                              देखती हूँ कौन से रंग भर पाउंगी||

Monday, May 2, 2011

kahani

गज़ब की कहानी है मेरी
सोचते ही अजीब सी कैफ़ियत हुई
देखा अपनी किस्मत को
अपने ही हाथों से फिसलते हुए
आंसुओं को अपने जो मैंने रोकना चाहा
उनके सिलसिलों में भी बरक़त हुई
सैलाब आया इक एकदम नया
जिससे मेरी ज़िन्दगी में हलचल हुई
इक करवट ने बदल दी सारी फ़ज़ा
उसे न कोई भी ज़हमत हुई
दूसरों की मुस्कुराहटों की क़ीमत
मेरे बिस्तर की सिलवटें हुई
फुरकत ही फुरकत है अब 
मेरी खुशियों का निशाना मेरी यादें हुई..................