ik roz
Monday, October 31, 2011
सहर....
चाहिए एक नयी ज़मीन
जहाँ न कुछ भी पुराना हो...
न कोई भी डर रहे
न कोई गम पुराना हो...
काश इस काली स्याही को
हकीक़त की मुहर मिल जाए...
अब थक चुकी हूँ मैं
इस शाम को नयी सहर मिल जाए... ... !!!!
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