Sunday, November 6, 2011

पीछे मुड़कर देखा तो....

महीनो बाद आज मेरे ज़हन में आया कि अब बहुत हो गया कुछ लिखना चाहिए वरना अपनी अभिव्यक्ति की शक्ति जिसपे मुझे थोड़ा नाज़ है उससे हाथ धो बैठूंगी... बस क्या था जब देखा की सब अपने अपने काम में व्यस्त हैं... मैंने सोचा कि चलो आज अपनी कलम कि नीव पे जो स्याह परत बैठी है उसे उतार दूँ.... अब बात आई कि लिखने तो मैं बैठ गयी लेकिन लिखूं क्या....फिर अचानक नीलेश मिश्रा का यादों का idiot  बॉक्स प्रोग्राम याद आया... सोचा क्यूँ न मैं भी कुछ वैसा ही लिखने की कोशिश करूँ....


        ऐसा पहली बार हुआ है सत्रह अठरह सालों में
        कोई आये जाए मेरे ख्यालों में.....

समय के साथ लोगों की सोच बदली और उसके साथ बदले गाने और उन गानों का मतलब ..... सुमित सुबह सुबह इस गाने को गुनगुनाते हुए अपने घर में घूम रहा था... तब शायद उसे ये भी न पता था कि ये प्यार किस बाला का नाम है... बस जी गाना था बिलकुल लेटेस्ट था तो वो गा रहा था.... अचानक उसे याद आया कि इस गाने के चक्कर में वो कॉलेज के लिए लेट हो रहा है... उसने दौड़ते भागते हुए अपने सारे काम ख़त्म किए और लगभग उससे भी दोगुनी रफ़्तार से सीढियों से नीचे उतरते हुए अपनी माँ को चिल्ला कर कहता है- माँ मैं कॉलेज जा रहा हूँ लौटते हुए निगम के घर जाना होगा तो लेट हो जाऊँगा... दरअसल उसके चिल्लाने का मकसद ही कुछ और था .... वो अपने पापा से बहुत ज्यादा डरता था... उनसे सामने पूछने कि हिम्मत न थी तो उन्हें सुनाते हुए जल्दी से भाग गया......
                  गलत ना तुम थे ना हम थे.....
                  खता इस उम्र की देहलीज़ की थी.... 
पता नहीं ये अक्सर हर घर में देखा जाता है कि बेटा अपने बाप के पास जाने से डरता है... उससे हर बात करने से डरता है... माँ का क्या है उसे तो अपने बच्चों कि हर बात ही अच्छी लगती है.... हाँ तो हम यहाँ थे ... सुमित जल्दी से अपने डे प्लान सुनाता हुआ घर से निकल आया... इससे पहले की पापा की तरफ से ना जाने का फरमान जारी किया जाता.... गाते से बहार आते ही उसने राहत की सांस ली की बेटा अब बच गये.... bike निकाली और लगभग उड़ाते हुए कॉलेज पहुच गया....
                  यूँ हवा से बात करना अच्छा लगता है....
                   मुझे दिन रात करना अच्छा लगता है.....

सुमित कॉलेज के सेकंड इयर में पढता था, दरअसल आज ही उसके सेकंड इयर की पहली क्लास थी.... उसके excitement  की उससे भी बड़ी वजह ये थी कि आज उसके जुनिअर्स आने वाले थे... उसे आज अपने फर्स्ट इयर का पहला दिन याद आ रहा था ... जब उसके seniors  ने उसकी ragging  ली थी.... आज उसका दिन था ... आज उसके सामने कई नए चेहरे होने वाले थे जिनकी ragging उसे लेनी थी... कॉलेज पंहुचा अपनी bike  लागायी और दौड़ के पहुंचा कैंटीन की तरफ... जहाँ उसके friends उसके इंतज़ार कर रहे थे.... वहां बहुत ज्यादा भीड़ थी... उसे समझ में आ गया कि उसके शिकार पहले ही वहां आ पहुचे हैं... उसने और उसके दोस्तों ने 
नए बच्चों की जमकर क्लास ली... तभी उस भीड़ में उसे १ घबरायी सी शक्ल दिखी.... उसने उसे आवाज़ दी.... वो आगे आई.....  उसने उसकी सुरमेदार आँखों में देखा...
                        आज तक ज़ब्त था जो कहीं दिल में...
                        उसकी एक निगाह ने मरहूम कर डाला...
                        बेमुर्रव्वत है वो पलकें ज़ालिम....
                        जो लुटने के बाद भी बंद ना हुई....
 सुमित को तो होश भी नहीं था कि वो कुछ पूछने लायक ही ना बचा.... जब उसने किसी और जवाब में बताया कि उसका नाम श्रुति है तब जाके उसे होश आया... वरना उसे तो पता ही ना था कि वो कहाँ  गुम हो गया था... बेल हुई और सब अपनी अपनी क्लास कि ओर बढे... डिजाईन की क्लास में हमेशा से इंटेरेस्ट लेने वाला सुमित पता नहीं आज कहाँ खोया था... कॉलेज ख़त्म हुआ और वो अपने घर की तरफ निकल पड़ा... सुबह घर से चिल्ला के निगम के घर जाने का फैसला सुनाने वाला सुमित घर की तरफ निकल आया... घर पंहुचा तो माँ ने पूछा जल्दी घर कैसे आ गया ??? वो क्या जवाब देता... उसे तो खुद ही पता ना था... वो मुड़ गया अपने कमरे की तरफ...

आजकल सुमित रोज़ ही junior विंग के चक्कर लगाने लगा है... कभी किसी बहाने से तो कभी किसी बहाने से.... बस जाने का कारण १ ही है.... श्रुति भी इस बात को अच्छे से समझने लगी थी .... सुमित एक दिन अपने दोस्तों के साथ खड़ा था ... तभी वहां से वो गुजरी... उसके दोस्तों ने उसे रोक लिया और कहा कि १ गाना सुनाओ... और उसने बिना रुके १ नगमा सुनाया....
                                मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने...
                                 अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन....
                                सोचता हूँ मुझे आये थे उठाने कितने....
                                अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है....
                                 सोचते होंगे ये बात ना जाने कितने....   
                                 अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                तुम नया ज़ख्म लगाओ तुम्हें इससे क्या है...
                                भरने वाले हैं अभी ज़ख्म पुराने कितने... 
                                अब गुजारेगा मेरे साथ वो ज़माने कितने....
                                मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने...  

सुमित को अचानक लगा कि जैसे उसे अब सांस लेने में मुश्किल हो रही है... श्रुति सब समझ चुकी थी.... वो वहां से भाग गया.... अगले दिन कॉलेज आया तो श्रुति उसके पास आई... कुछ कहा नहीं बस १ कागज़ का टुकड़ा उसे पकड़ा कर चली गयी... उसने उस चिट्ठी को खोला...
                              
                                 माना कि मोहब्बत को छुपाना है मुहब्बत....
                                 तू कभी मोहब्बत जताने के लिए आ... 

आज उनकी पहली डेट थी... जी हाँ सुमित और श्रुति कि डेट... सुमित ने सोचा कि उसके लिए क्या लेकर जाए... फिर उसने उसके लिए तोहफे में  १ खूबसूरत  कलम खरीदी.... उसने वो कलम श्रुति को दी.....

                                 लाया वो मेरे लिए स्याही लाल...
                                 तोहफे के पैगाम ने मुझे लाल कर दिया... 

इस तरह दो साल बीत गए और सुमित कॉलेज से निकल गया... उसकी नौकरी १ अच्छे firm  में लग गयी... वो खुश था .. बहुत खुश... लेकिन वहाँ कोई था जिसे इस खबर से ख़ुशी तो हुई लेकिन दिल का १ कोना सिसक भी रहा था.... सुमित ने उसे समझाया था... पागल अगले साल तुम्हारी पढ़ाई ख़त्म होतेही हम इस लायक हो जाएंगे कि हम शादी कर सकें... तुम बस पढ़ाई में मन लगाओ... बाकी तो हम हर वीकेंड पर मिलते ही रहेंगे... वो हँसी .. एक फीकी मुस्कान ... लेकिन आज उस चेहरे पर वो रौनक नहीं थी.... उन आँखों में वो नूर दूर दूर तक नहीं था...
                          गुम ए जुदाई है बहुत मुश्किल...
                          काश कि ये भी बचपना होता...
                          १ खिलौने से बहल जाता ये दिल....
                          इसमें ना ज़ब्त कोई गम पुराना होता....

दिन बीतते गए.... सुमित अब busy  रहने लगा था .... ऑफिस के काम के बाद खुद के लिए वक़्त निकालना भी तो मुश्किल हो रहा था... फिर उसे उसकी पढ़ाई ख़त्म होने तक अच्छे से settle  भी तो होना था.... इस भागमभाग में उसे उससे मिलने का वक़्त नहीं मिल पाता था... श्रुति को लगा कि सुमित बदल गया है... उसे बस कॉलेज तक उसकी ज़रूरत थी.... अब उसे शायद ऑफिस की किसी लड़की से मोहब्बत हो गयी है...

                              मर भी जाऐं मुहब्बत में तो 
                              काफिर ही कहलाएंगे....
                              जीना तो चाहते हैं मगर....
                              जीने का एहसास तो हो...

पता ही ना चला कब १ साल बीत गया... आज श्रुति का एक्ज़ाम ख़त्म हो गया.... वो १ प्यारा सा फूलों का bouquet लिए कॉलेज के गेट पर खड़ा था... इस इंतज़ार में कि कब वो आएगी और वो उसे खुशखबरी सुनाएगा... वो आई... उसके चेहरे पर आज भी वही मासूमियत थी... आज भी आँखों में वही नूर था... हाँ वो बिलकुल वैसी ही थी... वो उससे उसी मुस्कराहट के साथ मिली.....
लेकिन ये क्या... आज उसके कंधे पर हाथ रख कर चलने वाले हाथ बदल गए थे.... ये तो उसके हाथ नहीं थे श्रुति के कंधे पर... वो लड़का था कौन... उसने श्रुति से पूछा...  उसने अपने चेहरे पर अजीब सी मुस्कुराहट सजाते हुए कह... तुम ये हक खो चुके हो सुमित..... वैसे आज तुमने ये पूछ लिया है सुनो... ये मेरा fiance है... मैंने तुम्हारा बहुत इंतज़ार किया लेकिन तुम नहीं आये... तुम्हें याद है वो पेन जो तुमने मुझे दिया था... तुम्हारे इंतज़ार में मेरा दिल उस लाल स्याही कि तरह खून के आंसू रोया था... लेकिन तुम नहीं आये... पापा ने मुझे इनसे मिलवाया और मेरे पास और कोई भी चारा नहीं था हाँ करने के अलावा... क्यूंकि मैं जिससे प्यार करती थी वो मेरे पास नहीं था....मेरे साथ नहीं था... इतना कह कर वो चली गयी....
उसके जाते ही सुमित आज दूसरी बार नींद से जगा था... पहली बार जब उसने श्रुति को पहली बार देखा हा और आज जब वो उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चली गयी थी... उसने कहने का मौक़ा भी नहीं दिया कि उसने श्रुति के लिए घर ख़रीदा है जहाँ वो शादी करके रहने वाले थे...और तो और उसने अपने हिटलर बाप को भी मना लिया था उनकी शादी के लिए... कुछ नहीं कह पाया वो कुछ भी नहीं.....
                    
                                आज बीती बातों को सोच कर दिल हँसता है...
                                 वो पल आज भी मेरे दिल में आशना हैं....
                                तेरी भीगी पलकों पे रुका वो मोती याद है...
                                 शीशे कि तरह उतरता तेरा हर लफ्ज़ याद है....

अपनी खिड़की से बाहर बर्फ से घिरा हुआ मंज़र देख कर उसे बर्फ सी ठंडी से यादें ज़र्द कर गयी... मुक़र्रर तो वो कभी ना था...  मसलाहट भी कोई और ना मिली.... आज उस बात को दस साल बीत गए... लेकिन आज भी वो ज़ख्म उतने ही गहरे हैं... आज भी वो खुद को काम में मशरूफ रखता है .. लेकिन ऑफिस बंद होने कि वजह से उसे अपने यादों कि पोटली को खोलने का मौका मिल गया.....

                                     यादों का सफ़र खोलो तो ...
                                     कुछ लोग याद आ जाते हैं....
                                     कभी मिले या ना मिले....
                                     कुछ दर्द छोड़ जाते हैं.... !!!!!


                                
                                                                        

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