अरसां बीत गए उस गली में आये हुए
आज कदम रखा तो जैसे महसूस हुआ
जुदा था वो मेरे वूजूद के हिस्से से
दबा था वो मेरे दिल के किसी कोने में
वो गली जिससे मेरा बचपन था बीता
उनकी यादें आज भी बेनज़ीर हैं
कभी ये बतलाने की कोशिश न की
आज निकले बरबस आंसुओं ने सब कह दिया
गली की वो मिटटी की भीनी खुशबु
आज भी दिल को खुशनुमा कर रही है
इस ज़मीन पर रखा हुआ हर इक कदम
मेरे दिल पे दस्तक दे इंतिला कर रही है
शाम के वक़्त इस गली में टहलना
बिजली गुल होने पर यहाँ घूमते ही जाना
गली की दोनों तरफ लगी वो दीवार
जहाँ बैठ हर शाम गप्पे लड़ाना
ये यादें आज भी लगती बहुत हसीं हैं
लोगों को लगता ये मेरा दीवानापन है
हँसते हैं वो समझाते भी हैं
कहते हैं अब ये एक पुरानी गली है.......
khoobsurat likha hai......
ReplyDeleteजी बहुत-बहुत शुक्रिया........
ReplyDelete